नई पुस्तकें >> किस किस से लड़ोगे किस किस से लड़ोगेपंकज चौधरी
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पंकज चौधरी की कविताओं की अपनी अलग पहचान है। वे कविता में जीवन और समाज के उन पक्षों को भी सामने लाते हैं, जिनकी चर्चा तो दूर, सामना करने मात्र से भी कविगण डरते या बचते रहे हैं। प्रतिरोध वैसे तो हिन्दी कविता का मुख्य स्वर है, लेकिन ध्यान देने की बात है कि इसकी भी कुछ रूढ़ियाँ बन गयी हैं, कुछ क्लीशेज बन गये हैं। उन धारणाओं और बोध से बाहर निकलकर यथार्थ का अनुसन्धान तो दूर रहा, अवलोकन का प्रयत्न भी लोग नहीं करते हैं। जबकि पंकज एक ऐसे कवि हैं, जो प्रतिरोध को लेकर हिन्दी समाज में बन रही तमाम तरह की पृष्ठोक्तियों को तोड़ते हैं और यथार्थ के उन पहलुओं को कविता में उजागर करते हैं, जो अब तक भाषा की पहुँच से बाहर थे। ‘साहित्य में आरक्षण’, ‘जाति गिरोह में तब्दील हुआ हिन्दी साहित्य’, ‘कम्युनिस्ट कौन है?’, ‘हिन्दी कविता के द्विजवादी प्रदेश में आपका प्रवेश वर्जित है’ जैसी अनेक कविताएँ इसका उदाहरण हैं।
नये यथार्थ से कवि की इस टकराहट के साथ कविता की अन्तर्वस्तु ही नहीं बदलती है, भाषा और शिल्प में भी अपेक्षित बदलाव आता है। पिछली सदी के अन्त में प्रख्यात तेलुगु कवि वरवर राव की कविता पर बात करते हुए मैंने साहस के सौन्दर्य की चर्चा की थी।
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